Wednesday, December 29, 2010

संत्री और मंत्री

मई का महीना समाप्त होने को था. दिल्ली की झुलसा देने वाली गर्मी से त्रस्त दिल्लीवासी किसी न किसी शीतल स्थल की तलाश में भटक रहे थे. अवसर पाकर हमने भी बाहर घूमने का कार्यक्रम बना लिया. दिल्ली के आसपास के पर्वतीय स्थल तो कई बार देखे हुए थे, इस बार मध्य-भारत के प्रसिद्ध पंचमढ़ी के वनों में घूमने का मन बनाया.

मध्य प्रदेश की सतपुरा पर्वत श्रृंखला में शहरों की भीड़ और प्रदूषण से दूर स्थित एक शांत और साफ़-सुथरा छोटा सा स्थान है पंचमढ़ी. समुद्र तल से 1100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित पंचमढ़ी अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य समेटे हुए है. पाँच पाण्डवों की गुफ़ाओं के कारण पंचमढ़ी कहलाने वाले इस पर्वतीय स्थल को गहरे सरोवर, झरने एवं विश्रांत घने वन एक अनुपम छटा प्रदान करते हैं. मनुष्यों द्वारा छेड़-छाड़ से मुक्त इसका प्राकृतिक सौन्दर्य इस स्थल के प्राकृतिक सौन्दर्य नैसर्गिक चट्टानों की आकृतियों और मन्दिरों की सम्पदा से सम्पन्न है. घाटियों, लाल रेतीली चट्टानों, टीलों और जल-प्रपातों के रूप में प्रकृति मानो निमन्त्रण दे रही हो!

पंचमढ़ी भोपाल से लगभग 200 कि. मी. दूर स्थित है. रमणीय पहाड़ी मार्ग से होते हुए लगभग चार से पाँच घण्टे का समय लगता है वहाँ पहुँचने में. जैसे-जैसे पँचमढ़ी निकट आता जाता है, दोनों ओर वनप्रान्त में से निकलते हुए सड़क पर वाहन में यात्रा करने का अपना अलग ही आनंद आता है.

पँचमढ़ी पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी. अगले दिन रविवार था. होटल के स्टाफ़ के साथ विचार-विमर्श कर अगले दिन इस सुन्दर स्थल के विहार का कार्यक्रम बना लिया. हमें बताया गया कि इन पहाड़ी मार्गों पर निजी वाहनों पर घूमना व्यावहारिक नहीं था क्योंकि कई मार्ग कच्चे थे और ऊबड़-खाबड़ थे. अतः हम स्टाफ़ को एक जिप्सी का प्रबन्ध करने के लिए कह दिया.

अगले दिन सुबह कार्यक्रमानुसार सुबह-सुबह हम तैयार हो गये. किन्तु जिप्सी नहीं आयी. पता चला कि भारतीय संसद में विपक्ष के नेता के पंचमढ़ी-भ्रमण के कारण सुरक्षा की दृष्टि से स्थानीय पोलीस ने अधिकांश जिप्सियों का अधिहरण कर लिया था. बाकी जिप्सियों के मालिकों ने अपनी जिप्सियाँ पोलीस के डर से छुपा दी थीं. कोई जिप्सी नहीं, मतलब कोई घूमना-फिरना नहीं. जहाँ-जहाँ साधारण टैक्सी जा सकती थी, वहाँ तो हम हो आये किन्तु मुख्य पर्यटक-स्थलों यथा जटाशंकर, पाण्डव गुफ़ाएं, अप्सरा विहार, महादेव गुफ़ा, रजत प्रपात, राजेन्द्र गिरि, चौरागढ़, धूपगढ़ आदि का भ्रमण हम नहीं कर पाये. होटल में ठहरे कुछ लोग तो कहीं भी नहीं गये - इस आशा में कि अगले दिन हालात बेहतर हो जाएंगे और वे जिप्सी में ही घूम लेंगे.

शाम को हम स्थानीय बाज़ार में घूम रहे थे. पैदल घूम-घूम कर जूते की शामत आ गयी थी. उसे ठीक कराने के लिए चर्मकार की सेवाएँ ले रहे थे. वहाँ तीन-चार चर्मकार एक साथ बैठे थे. उनमें से एक खाली बैठा था और ज़ोर-ज़ोर से स्वगत संभाषण दे रहा था: "ये मन्त्री (उसका तात्पर्य राजनैतिक नेताओं से था) खुद तो ए.सी. कारों में आएंगे, ए.सी. होटलों में ठहरेंगे, सब तरह की ऐश-मौज करेंगे. आम आदमी की दिक्कतों से इनका क्या लेना-देना! उनकी बला से! आम आदमी चाहे जिये, चाहे मरे. और ये सन्त्री (अर्थात नौकरशाह) तो और भी ज़्यादा बेदर्द हैं, मन्त्रियों से भी ज़्यादा. एक आदमी के कारण हज़ारों लोगों की रोटी छिन गयी है, बेवजह!"

हमारी ओर इशारा करते हुए वह बोला, "आप लोग हज़ारों मील दूर से आये हैं, पैसा खर्च करके. कुछ देखने आये हैं कि होटल के कमरे में कैद होने? बरबाद हो गया सब पैसा. वापस घर जाएंगे तो क्या बताएंगे, देख आये पंचमढ़ी? कौन भरपाई करेगा इस नुकसान की? कैसा लग रहा होगा आप लोगों को?

"ये अखबार टी.वी. वाले भी आये हैं मन्त्री जी के पीछे-पीछे! इण्टर्व्यू करते फिर रहे हैं लोगों का. ऊटपटांग सवाल पूछे जा रहे हैं, मौसम कैसा है.. कैसा लग रहा है.. अरे, कोई पूछ रहा है कितनी तकलीफ़ में हैं सब? कोई नहीं पूछता हमसे, शाम को क्या खिलाएंगे बच्चों को?

मैं हैरान था इस अभिभाषण से! इस प्रकटतः अनपढ़ व्यक्ति ने कितनी सुन्दरता से पूरी व्यवस्था पर टिप्पणी कर सार प्रस्तुत कर दिया था. नेताओं से लेकर नौकरशाह और मीडिया तक सीख सकते थे इस निर्धन आम आदमी से!

रात को होटल के डाइनिंग हॉल में होटल का स्टाफ़ भोपाल से नेता जी की सुरक्षा एवं अन्य व्यवस्था करने के लिए आये और होटल में ठहरे नौकरशाहों की आवभगत करने में व्यस्त था. हम जेब से पैसा खर्च करके ठहरे मेहमानों के साथ दोयम दर्ज़े के नागरिकों जैसा व्यवहार किया जा रहा था. मुझे रह-रह कर उस चर्मकार की बातें याद आ रही थीं!

अगले दिन, नेताजी का शहर में आगमन नियत था. हालात और भी खराब थे. कोई जिप्सी नहीं थी, पिछले दिन की तरह. आज तो निजी वाहनों को भी अनुमति नहीं थी पर्यटक स्थलों पर जाने की. नेताजी की सुरक्षा की खातिर! जो लोग रविवार को कमरे में ठहरे रहे, अब उनके पास दो दिन और कमरों में बन्द रहने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था.

मंगलवार प्रातः लौट के बुद्धू घर को आये. सोचा, फिर कभी दोबारा आएंगे पंचमढ़ी.

अगले सप्ताह बिटिया को मुम्बई के लिए विमान लेना था, दिल्ली एयरपोर्ट से. धौला कुआं के पास हमारा वाहन ट्रैफ़िक जाम में फंसा हुआ था. पता चला, प्रधानमन्त्री एयरपोर्ट जा रहे थे, जिसके कारण आम ट्रैफ़िक रोक दिया गया था. विलम्ब के कारण उड़ान छूट गयी, एयरपोर्ट पर अफ़रातफ़री में बिटिया का नया मोबाइल खो गया.

क्षोभ में एक पुराने समाचार-पत्र की सुर्खियों ने अचानक ध्यान आकृष्ट कर लिया, ’वी. आई. पी. की उड़ान के कारण तीन जैट विमान दुर्घटना से बचे.’ समाचार कुछ इस प्रकार था, "... वी.आई.पी. आवागमन के कारण आज जयपुर एयरपोर्ट के ऊपर तीन विमानों में ईंधन समाप्त हो गया और वे बाल-बाल बचे. इन तीन विमानों में उस समय 450 से अधिक यात्री सवार थे. आज कुल 11 उड़ानें जयपुर, चण्डीगढ़ एवं लखनऊ की तरफ़ मोड़ दी गयी थीं, जबकि 20 उड़ानें लगभग एक घण्टे तक दिल्ली एयरपोर्ट के ऊपर चक्कर लगाती रहने को मजबूर थीं. राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की चीन-यात्रा एवं तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष गुर्बांगुली बेर्दिमुन्हा के आगरा भ्रमण के कारण एयरपोर्ट एक घण्टे से अधिक समय के लिए बन्द कर दिया गया था."

कुछ ही दिन बाद प्रधानमन्त्री की सुरक्षा के लिए किये गये बन्दोबस्त के कारण कानपुर में अमन खान नामक आठ वर्ष के एक बालक की मृत्यु का समाचार छपा.

कहते हैं, समय के साथ सभी घाव भर जाते हैं. पंचमढ़ी वाला अनुभव हो अथवा दिल्ली एयरपोर्ट वाला, हमारा कष्ट समय के साथ दूर हो ही जाएगा! किन्तु आठ वर्ष के उस नन्हे बालक के माता-पिता का दर्द क्या समय भी दूर कर पाएगा? किन्तु इन सन्त्रियों और मन्त्रियों को इससे क्या!

नज़दीक से

-विक्रम शर्मा

No comments:

Post a Comment