जैसे फ़िल्मों में दिखाते हैं, मेरे दिल और दिमाग के बीच घमासान युद्ध जारी था. दिल इस आलेख को लिखने को कह रहा था और दिमाग सावधान कर रहा था कि ऐसा करना खतरे से खाली नहीं था. इसमें कुछ मित्रों को नाराज़ करने का जोखिम था! दोनों के तर्क-वितर्क को मैं साक्षी भाव से सुन रहा था.
मेरे दिल और दिमाग के गुत्थम-गुत्था होने को अनदेखा करते हुए मेरे भीतर का साहित्यकार (मानो या न मानो!) यह आलेख टाइप करने में जुटा हुआ था.
फ़ेसबुक पर मेरा पदार्पण इसी वर्ष हुआ था. उधर घर की दीवार पर मुफ़्त में मिला कैलेण्डर टँगा, इधर फ़ेसबुक में मेरा खाता खुला. उसके बाद प्रारम्भ हुआ मेरा रोचक एवं शिक्षाप्रद अनुभवों से भरा सफ़र.
मैंने पाया कि फ़ेसबुक भड़ास निकालने का सबसे प्रभावी, सस्ता एवं सुलभ माध्यम है. यहाँ सभी प्रकार के दबे-छुपे, अधमरे, कुचले भाव न केवल पुनर्जीवित हो जाते हैं, वरन उन भावों को प्रकट करने का साहस स्वतः आ जाता है. बेखौफ़, बेझिझक और चाहो तो बेशर्मी के साथ अपनी बात कह सकते हैं यहाँ. आखिर यह एक आभासी दुनिया है, वास्तविक थोड़े ही है.
कभी-कभी मुझे लगता है इसे आभासी (Virtual) कहना तर्कसंगत नहीं है. यह तो वास्तविक दुनिया का सच्चा प्रतिरूप है. बचपन में सुना था कि शराब के नशे में व्यक्ति का असली स्वरूप दिखाई पड़ता है. फ़ेसबुक एक नशा है, सस्ता किन्तु असरदार. यहाँ भी व्यक्ति अपने असली स्वरूप में दिखाई पड़ता है.
अंग्रेज़ी के F***, S**** जैसे शब्द तो यहाँ ऐसे बिखरे पड़े हैं, जैसे अमावस के काले, स्वच्छन्द आकाश में तारे. जिनका हाथ अंग्रेज़ी में बहुत तंग है, वे हिन्दी के तेरी*** जैसे मुहावरों से काम चला लेते हैं. यहाँ सब शेर हैं. कोई क्या बिगाड़ लेगा? इण्टरनैट पर थप्पड़ या घूँसा तो कोई मार नहीं सकता! तो दो गाली, जमकर.
वैसे फ़ेसबुक पर सिर्फ़ गाली गलौज ही नहीं होता. प्यार-मोहब्बत भी होता है. सब तरह का प्यार. मानवता से लेकर प्रेमी-प्रेमिका से होकर प्रेमी-प्रेमी अथवा प्रेमिका-प्रेमिका वाला प्यार. कोई कामुक-कमसिन हसीना यदि आपसे प्रेम का इज़हार करे तो क्या करेंगे आप? सावधान! वह कामुक सी दिखने वाली हसीना एक मर्द भी हो सकता है, जो आपको बेवकूफ़ बना रहा हो. यदि आप मर्द हैं तो घबरा मत जाइएगा, जब कोई मर्द ही आपसे प्रेम का इज़हार करे - दोस्ताना फ़िल्म वाला प्रेम! महिलाएं भी सावधान रहें.
फ़ेसबुक पर दोस्ती बढ़ाने का सबसे कारगर तरीका है, एक-दूसरे की पीठ खुजाना. तुम मेरी तारीफ़ करो, मैं तुम्हारी करूंगा. ख्याल रहे, इसमें एक बार भी चूक हो गयी तो दोस्त खोने का ख़तरा है. दोस्ती की शर्त ही यह है कि मैं जो भी लिखूँ, जैसा भी लिखूँ उसकी तारीफ़ करनी पड़ेगी. सांत्वना इस बात की है बदले में आप भी मुझसे वही प्रत्याशा रख सकते हैं जिसकी अवहेलना होने पर आप दूसरे मित्र तलाशने को स्वतन्त्र हैं. किसी ने सही संज्ञा दी है फ़ेसबुक को, 'तेलबुक'!
यदि आपको फ़ेसबुक पर अपना मित्र-मण्डल बढ़ाना है तो समान विचारधारा के लोगों को ढूंढिए. देखते ही देखते आपके ढेर सारे मित्र होंगे. अब मिलकर एक ही बात को बार-बार दोहराइए. एक ही राग बार-बार अलापिए. जिसे कोसना है, मिलकर कोसिए. जिसका गुणगान करना है, ताल ठोंक कर करिए. यदि गलती से कोई विरोधी स्वर मुखर हो जाए, तो टूट पड़िए उस पर और मनचाही भाषा में गाली-गलौज कीजिए. भूलकर भी विरोधी कैम्प की तरफ़ मत बढ़ जाइएगा, वरना आपका भी वही हश्र होगा जो आप दूसरों का अपने मित्रों के साथ मिलकर अपने गढ़ में करते हैं.
फ़ेसबुक पर कई आन्दोलन चल रहे हैं. कोई किसी विचारधारा अथवा संस्था विशेष को प्रतिष्ठापित करने के लिए गाली-गलौज कर रहा है तो कोई उस विचारधारा का नामो-निशान मिटा देने का संकल्प लिए हुए ऐसा कर रहा है. आप किसी भी बारे में बात कीजिए, ये आन्दोलनकारी घुमा-फिराकर, येन केन प्रकारेण बात को उसी बिन्दु पर ले आएंगे, जो उन्हें प्रिय है अथवा जिसके लिए उन्होंने जन्म लिया है!
यदि आप किसी को प्रभावित करना चाहते हैं अथवा स्वयं को एक बुद्धिजीवी के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहते हैं तो अपने पेज पर बुद्धिजीवी विचार-विमर्श प्रारम्भ कीजिए. ध्यान रहे, दूसरे लोग आपके पेज पर आने चाहिएँ. भूलकर भी किसी दूसरे के पेज पर जाकर गम्भीर विषयों पर टिप्पणी मत कीजिएगा. इससे आपका कद कुछ छोटा होने की आशंका है.
यदि आपकी जानकारी कुछ कम है तो भी वार्तालाप करने से पीछे मत हटिए. जानकारी न होते हुए भी उसे प्रदर्शित करने एक तकनीकी उपाय है. गुरू गुग्गल की शरण में जाइए. जिस विषय में वार्तालाप हो रहा हो, उस विषय में सर्च कीजिए और कॉपी-पेस्ट कर डालिए. कहते हैं, नकल के लिए भी अकल चाहिए. फ़ेसबुक पर वह भी आवश्यक नहीं! वैसे भी वार्तालाप में कौन पढ़ने वाला है आपके लिखे को. सब अपना-अपना लिखने में व्यस्त हैं अथवा अस्त-व्यस्त हैं. आपकी पेस्ट की हुई सामग्री यदि अप्रासंगिक भी हुई तो कोई बात नहीं, बस उच्च-स्तरीय अथवा क्लिष्ट होनी चाहिए. जब समझ नहीं पाएंगे दूसरे, तो आपके ज्ञान का लोहा मान ही जाएंगे!
अन्तिम बात, मेरी तरफ़ से. जो कुछ भी ऊपर लिखा है, मेरे साहित्यकार ने, वह दूसरों के बारे में है. आपके बारे में नहीं. आप तो मुझ जैसे हैं!
नज़दीक से
-विक्रम शर्मा
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