दिल्ली. सुबह का समय, जब काम पर जाने के लिए निकले लोग मिलकर ट्रैफ़िक नाम की वस्तु को जन्म देते हैं और फिर उसी ट्रैफ़िक को जम कर कोसते हैं. मैं स्वयं ड्राइव कर रहा हूँ और एक चौराहे पर बार बार लाल दिख रही बत्ती पर फँसा हुआ हूँ.
कोहरे भरी सुबह है. मेरी कार का हीटर चल रहा है और मैं एफ़. एम. पर चल रहे संगीत का रसास्वादन कर रहा हूँ.
ढक.. ढक.. ढक.. ढक.. मुझे कुछ आवाज़ें सुनाई दे रही हैं. मैं चारों ओर देखता हूँ. मज़दूर सा दिखने वाला एक आदमी. धुँधले शीशे में से ऐसा लगता है जैसे वह किसी कार का शीशा साफ़ कर रहा है. मैं मुड़ कर सिग्नल की तरफ़ देखता हूँ हरी बत्ती की उम्मीद के साथ. अभी भी लाल बत्ती है. ढक.. ढक.. ढक.. ढक.. की ध्वनि फिर आ रही है.
वह आदमी शीशा साफ़ कर रहा है? फिर ये आवाज़ें कैसी? दिमाग की बत्ती जलती है! मैं मुड़कर आवाज़ की दिशा में देखता हूँ. उस आदमी के हाथ में एक पत्थर है, बड़ा सा... नहीं. वह शीशा साफ़ नहीं कर रहा. वह तो शीशे तोड़ रहा है.. पत्थर से.. एक युवती ड्राइवर की सीट पर बैठी है - हक्की- बक्की!
वह व्यक्ति संतुष्टि एवं आत्मविश्वास से भरपूर भाव-भंगिमा के साथ मुड़ता है और आराम से ट्रैफ़िक में खो जाता है.
युवती चीखती-चिल्लाती नहीं. वह भी आश्वस्त कदमों के साथ कार से बाहर निकलती है और अपने मोबाइल फ़ोन पर कोई नम्बर डायल करती है. लोग, जिनमें मैं भी शामिल हूँ, उसकी तरफ़ बिना किसी भाव के देख रहे हैं.
"शायद इस लड़की ने उस आदमी को कार से टक्कर मारी होगी और कार भगाकर ले गयी होगी," मेरी पत्नी, जो मेरे साथ कार में बैठी है, अपनी राय बताती है. रात ही हमने मूवी 'ऐक्सीडेण्ट ऑन ए हिल रोड' देखी थी जिसकी याद शायद पत्नी के दिमाग में ताज़ा थी.
बत्ती हरी हो जाती है. पीछे से पों पों कर हॉर्न बजने शुरू हो जाते हैं. ट्रैफ़िक के साथ मैं भी कार चला रहा हूँ, यह सोचते हुए कि अभी-अभी जो मैंने देखा, वह सत्य था अथवा मिथ्या? क्या यह उसी रोड-रेज (सड़क वाले गुस्से) का नमूना था? क्या यह उसी तरह की एक बासी खबर का अगला चरण था जिसमें अमीरों की बिगड़ैल औलाद आम आदमी की जान की परवाह नहीं करतीं? क्या यह पिछड़े और शोषित वर्ग की चेतावनी थी कि अब वह और बर्दाश्त नहीं करेंगे और ईंट का जवाब पत्थर से देंगे? लोगों से भरी सड़क पर एक युवती की कार पर सरे-आम आक्रमण और सबका मूक दर्शक बने देखते रहना क्या आम आदमी की समाज के प्रति अनासक्ति का नमूना था? या ये सब?
क्या यही मॉडर्न इण्डिया की असली तस्वीर है?
नज़दीक से
-विक्रम शर्मा
vikram ji,aaj aise haalaat shaayad aam hai! logon ko khud ke sivaay kisi ki bhi nahin padi hai.sabhi ''hame kyaa karnaa hai'' ki bhaavnaa se grast hai.
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