Monday, December 27, 2010

बॉबी

भीड़ भरी सड़क पर किसी ने मुझे ज़ोर से पुकारा और फिर कन्धे पर हाथ रख दिया. पीछे मुड़कर देखा तो आंखों पर सहज विश्वास ही नहीं हुआ. "बॉबी?" मेरे मुख से अनायास निकल गया. वर्षों बाद भी वही चेहरा, वही मुस्कुराहट!

हम दोनों हाथ पकड़कर सड़क के किनारे हो लिए. इतनी सी देर में मेरे सामने बचपन की ढेर सारी यादें मानो चलचित्र की भांति मेरे सामने से गुज़र गयीं.

बॉबी मौज-मस्ती करने वाला, हमेशा प्रसन्नचित्त, प्रफुल्लित रहने वाला एक लड़का था. मुझसे दो-तीन वर्ष बड़ा था किन्तु फ़ेल हो-होकर वह मेरी कक्षा में आ गया था. हमारी गली के दूसरे मुहाने पर रहता था. पूरी गली का चहेता. सबके काम आने वाला. किन्तु घर वालों की दृष्टि में आवारागर्द, निखट्टू. वैसे था वह कुशाग्र बुद्धि का स्वामी. पढ़ता भी बहुत, किन्तु स्कूल पाठ्यक्रम की पुस्तकों से वह कोसों दूर रहता. हर समय उसके हाथ में कोई उपन्यास होता. चालू किस्म का जासूसी या रोमाण्टिक उपन्यास. सड़क पर चलते-फिरते भी वह उपन्यास पढ़ रहा होता.

एक बार वह दिल्ली मिल्क स्कीम का दूध लेने जा रहा था. उन दिनों डी.एम.एस. का दूध काँच की बोतलों में मिला करता था. खाली बोतलों से भरा थैला उसके कन्धे पर और हाथ में उपन्यास. सामने से एक स्कूटर सवार से टक्कर हुई, थैला नीचे गिर गया, और काँच की बोतलीं टूट गयीं. महाशय ने थैला उठाया, उपन्यास चश्मे के सामने किया और चल दिये दूध लेने. डिपो पर जाकर देखा कि बोतलें टूटी हुई थीं. घर में आने वाली शामत से डर कर हेराफ़ेरी के सहारे टूटी बोतलें लाइन में रखी किसी और की बोतलों से बदलीं, दूध लिया और उपन्यास पढ़ते हुए जनाब घर वापस!

घर में बड़े भाई ने पूछा नयी बोतलों के लिए पैसे कहाँ से लाये? महाशय चकराये, कि भाई को कैसे पता चला बोतलों के टूटने के प्रकरण के बारे में! झूठ बोलने का प्रयास किया तो पता चला, जनाब जिस स्कूटर-सवार से टकराये थे, वह कोई और नहीं स्वयं उनका बड़ा भाई था. उपन्यास पढ़ने की तल्लीनता में उन्हें न तो यह पता चला कि वह किससे टकराये थे और न ही अपनी टांग में लगी चोट का कोई अहसास हुआ!

कुछ अरसे बाद अचानक बॉबी के जीवन में एक बड़ा परिवर्तन आया. उसके पिताजी का देहान्त हो गया. बड़े भाई ने एक बार डाँट-डपट कर घर छोड़ने को कह दिया. महाशय ने घर छोड़ दिया. यहाँ-वहाँ नौकरी की, किसी सहकर्मी से विवाह करना चाहा तो घर से दूरियां और बढ़ गयीं. अन्तत: उसने अपनी प्रेमिका से विवाह कर ही लिया और बाद में पता चला, पहले उसने शहर छोड़ा और बाद में देश.

आज दशकों बाद दिखा वह. विदेश से छुट्टियों पर स्वदेश आया था अपनी भतीजी की शादी के लिए. सुनकर अच्छा लगा कि उसके परिवार के साथ उसका मन-मुटाव समाप्त हो गया था. पास ही उसके भाई का घर था, जहाँ वह ठहरा था. उसकी पत्नी के दर्शन करने और उसके भाई को बधाई देने के लिए मैं उसके साथ चला गया.

शादी एक दिन पहले ही सम्पन्न हुई थी. अगले दिन मेरे मित्र का परिवार वापस विदेश जा रहा था. पूरे परिवार के साथ मेरी अच्छी गपशप हुई. बचपन की कई यादें ताज़ा हो गयीं. वर्षों पहले की कड़वाहट कहीं नहीं दिख रही थी.

थोड़ी देर के लिए मेरा मित्र अपनी पत्नी के साथ बाहर गया. अब मेरे साथ बॉबी के बड़े भाई और उनकी पत्नी थे. उनके भाई जैसे इस अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे. बोले, "जानते हो इस निखट्टू बॉबी ने क्या किया.... मेरे बेटी की शादी उसने की है. हम लोग तो लगभग सड़क पर आ गये थे. मेरा धन्धा चौपट हो गया. पुराना मकान बिक गया. वह मकान पुश्तैनी था. फिर भी कभी हक नहीं जमाया बॉबी ने उसपर. उलटे यह छत भी, जहाँ हम अपनी लाज बचाये बैठे हैं, बॉबी की ही दी हुई है. मेरी बेटी की शादी के खर्च की एक-एक पाई बॉबी ने दी है.

तुम्हें याद है, बॉबी का उपन्यास पढ़ने के लिए दीवानापन. घर छोड़ने के बाद उसने उपन्यास पढ़ना तो बन्द कर दिया मगर अपना दीवानापन नहीं छोड़ा. उसी दीवानगी और लगन से उसने जीवन में मेहनत की और आज वह इतना बड़ा आदमी बन गया है." बड़े भाई का गला भर आया.

"हमारा रोम-रोम ऋणी है, बॉबी और उसकी पत्नी का," अश्रुपूरित नेत्रों के साथ बड़ी भाभी बोलीं.


नज़दीक से
-विक्रम शर्मा

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