दुक्की की आँख खुली॰ अभी
अंधेरा था॰ गर्मियों में तो वैसे भी सूरज जल्दी निकल जाता है॰ मतलब, अभी
रात थी॰ फिर भी उसने उठकर खिड़की के बाहर झाँका॰ सचमुच रात थी॰ वापस लेट गया परंतु
नींद नहीं आई॰ थोड़ी देर बाद फिर उठकर रसोई जाकर पानी पिया और बैठक में जाकर घड़ी
देखी॰ अभी चार बजे थे॰ पौ फटने में अभी देर थी॰ वापस बिस्तर पर जाना पड़ा दुक्की को, हालांकि अब नींद कहाँ आने वाली थी उसे॰
दुक्की
को उसका नाम किसने दिया था, यह ज़िम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं था॰
दादाजी तो अब रहे नहीं॰ होते तो पूछता उनसे कि क्यों रखा यह नाम॰ यह भी कोई नाम
हुआ! स्कूल के रजिस्टर में कोई भी नाम लिखा हो, सब उसे पुकारते तो इसी नाम
से थे न! पिताजी से पूछता तो वह बस मुस्कुरा भर देते॰ गली के बच्चे उसे बताते कि
जिस प्रकार ताश के पत्तों में सबसे कम मूल्य दुक्की का होता है, वैसे ही उसका मूल्य भी सबसे कम होने के कारण सब
उसे दुक्की बुलाते हैं॰ देखने में तो वह कृशकाय था ही॰ वह खाना कम खाता था और
टॉनिक अधिक पीता था, जब से उसने होश संभाली तब से॰
माँ
इन कहानियों को झुठलातीं और उसे बतातीं कि वह परिवार में दूसरे नंबर का बच्चा था
इसलिए उसे दुक्की नाम दिया गया था॰ मगर तायाजी का बेटा जो परिवार में पहले नंबर का
बच्चा था उसे तो कोई इक्का नहीं कहता॰ चाचा जी के तीसरे नंबर वाले नन्हें बच्चे को
भी कोई तिक्की नहीं कहता! फिर उसे ही
क्यों दुक्की कहते थे सब?
चाचाजी
के मन्नू को कोई दुक्की कहे, इस विचार से ही सिहर गया
दुक्की॰ मन्नू से बहुत प्यार करता था दुक्की॰ चाहे जो हो जाए, वह किसी को दुक्की नाम से नहीं पुकारने देगा
मन्नू को, उसने एक बार फिर मन ही मन प्रतिज्ञा की॰
गरमियों
की छुट्टियाँ चल रही थीं॰ इस साल भी दुक्की को छुट्टियाँ घर में ही बितानी थीं॰
उसके पिताजी एक सरकारी कार्यालय में एल॰डी॰सी॰ थे॰ सीमित संसाधन थे और एक-एक पैसे
को दाँत से पकड़ कर खर्च करने की उनकी आदत थी॰ केवल एक ही क्षेत्र था जिसमें खर्च
करने में वह दिलदार थे॰ और वह क्षेत्र था, बच्चों की शिक्षा॰ सादा
पौष्टिक भोजन और अच्छी शिक्षा के अतिरिक्त सब खर्च उन्हें फिजूलखर्च लगते थे॰
तीनों भाइयों में आर्थिक दृष्टि से सबसे कमजोर थे दुक्की के पिताजी, परंतु वह संतुष्ट थे अपने जीवन से॰
अभी
दो हफ्ते ही उनका परिवार उसके चाचाजी के घर गया था, मन्नू को देखने, परंतु दुक्की का मन नहीं भरा था॰ वह मन्नू के पास रुकना चाहता था, अपने नन्हें छोटे भाई को करीब से देर तक देखना चाहता था, उसके साथ खेलना चाहता था॰ परंतु उसके माता पिता ने उसे मना कर दिया था॰
शायद आने-जाने में खर्च होता है इसलिए॰ दुक्की के बहुत ज़िद करने पर उसके पिताजी ने
उसे अकेले जाने की अनुमति दे दी थी॰ माँ ने विरोध किया था उसके अकेले जाने का
परंतु पिताजी ने कहा था, “अब बड़ा हो रहा है दुक्की॰ अब
उसे सीखना चाहिए, अकेले जाना भी॰“
आज
दुक्की अपने नन्हें भाई मन्नू से मिलने जा रहा था, अकेले, बस में बैठकर॰ उसके उत्साह का कोई ठिकाना न था॰
बहुत मुश्किल से रात कटी और अंततः सुबह हुई॰
दुक्की
तो मानो उड़कर मन्नू के पास पहुंचना चाहता था, परंतु उसकी माँ जैसे उसे
जाने ही नहीं देना चाहती थी॰ जानबूझकर सब कार्य धीरे धीरे कर रही थी और दुक्की खीझ
रहा था कि माँ जल्दी क्यों नहीं कर रही! पिताजी ने मामले को भांपकर कहा कि देर
होने से गर्मी बढ़ती जाएगी और लू चलनी शुरू हो जाएगी॰ तब जाकर माँ ने उसे नाश्ता
कराया और उसे यथासंभव जल्दी रवाना किया॰ दुक्की कुछ दिन रुकना चाहता था मन्नू के
पास परंतु उसकी माँ ने उसे एक ही जोड़ा कपड़े दिए एक छोटे से बैग में और दुक्की को
हिदायत दी कि वह अगली सुबह पहले पहर में ही वहाँ से वापस घर के लिए निकल ले॰
रास्ते में खर्च के लिए एक अठन्नी दी और कहा कि खरीदकर ठंडा पानी पीते रहना॰
दुक्की
अब बस स्टैंड पर खड़ा था॰ इस बस स्टैंड और बसों के नंबरों से उसका गहरा परिचय था॰
कई बार आया था वह यहाँ, अपने माता पिता के साथ॰ बसें आ रही थीं, परंतु भरी हुई॰ दुक्की जानता था कि थोड़ी देर के
बाद एक न एक बस आएगी जिसमें आसानी से चढ़ा जा सकेगा॰ बस की टिकिट 20 पैसे की थी॰
दुक्की को आधी टिकिट लेनी थी अर्थात 10 पैसे की टिकिट॰ एक प्राइवेट
मिनी बस आई जिसमें बैठने के लिए सीटें खाली दिख रही थीं॰ मिनी बस में हाफ़ टिकिट 15
पैसे की थी॰ इसलिए दुक्की ने उसे छोड़ने और सरकारी बस ही लेने का निर्णय लिया॰ बीच
बीच में फोर-सीटर भी आ रहे थे परंतु उसमें चढ़ने का तो विचार भी नहीं कर सकता था
दुक्की॰ पूरी अठन्नी, जिसका स्वामी था दुक्की, लेकर ही उस फोर-सीटर की विलासिता का रसास्वादन
कर सकता था वह॰ अगर फोर-सीटर में चला गया तो वापस कैसे आएगा वह? स्टैंड पर खड़े दुक्की को आधा घंटा से अधिक हो
गया था॰ सामने खड़ा हुआ पानी वाला उसे अपनी ओर खींच रहा था परंतु दुक्की ने यह
निश्चय कर लिया था कि वह बस के अपने गंतव्य पर पहुँचने के बाद ही पानी के गिलास पर
पाँच पैसे खर्च करेगा॰ उसके पास अठन्नी थी, जो बहुत थी, परंतु इतनी बड़ी राशि भी नहीं, कि वह फिजूलखर्ची कर सके॰
सामने
से दो व्यक्ति आ रहे थे, जिन्हें वह जानता था॰ वे लोग उसकी गली में भीख
मांगने आया करते थे॰ आज शनिवार था तो उनके हाथ में तेल के डब्बे थे॰ आज वे शनि का
दान मांगकर वापस जा रहे थे॰ या शायद कहीं और जा रहे होंगे बेचारे भीख मांगने, दुक्की का हृदय उनकी विपन्नता को देख भर आया॰
परन्तु वे दोनों उसके पास तक नहीं आए॰ सड़क पर खड़े फोर-सीटर में ठाठ से बैठे और
फुर्र से चला गया उनका फोर-सीटर॰ दुक्की मुंह बाये उनकी तरफ देखता रह गया॰
आखिरकार
एक सरकारी बस आई जो अपेक्षाकृत कम भरी हुई थी और दुक्की उसमें चढ़ गया॰ टिकिट लेने
के बाद उसके पास चालीस पैसे बचे थे – एक चवन्नी, एक दस पैसे और एक पाँच पैसे का सिक्का॰ बस से
नीचे उतरा तो तब तक वह कई बार सोच चुका था कि सबसे पहले वह एक गिलास पानी पिएगा॰
माँ ने भी कहा था, पानी पीते रहना॰ वैसे भी उसका गला सूख रहा था॰
सीधे वह पानी वाले के पास गया और एक गिलास पानी एक घूंट में ही पी गया॰ उसका मन
हुआ कि वह एक गिलास पानी और ले ले परंतु उसने स्वयं को रोक लिया॰ उसे स्मरण था कि
पिछली बार जब वह यहाँ आया था तो एक भुने चने वाला अपने चने उसे बेचना चाहता था
परंतु माँ ने मना कर दिया था॰ आज उसके पास दस पैसे का सिक्का था, जिसे वह अपनी मर्ज़ी से खर्च कर सकता था॰ चने की
पुड़िया का दाम भी दस पैसे ही था॰ पूरे सोच विचार के बाद उसने अपने दस पैसे के
सिक्के के बदले वह चने के पुड़िया अपने कब्जे में कर ली॰ चवन्नी आते हुए खर्च हुई, और वापसी के लिए भी उसके पास एक चवन्नी थी, बची हुई चवन्नी को जेब के हवाले करते हुए अपनी
सफल योजना पर आत्मविभोर होते हुए वह सोच रहा था॰
बस
स्टैंड से चाचा का घर करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर था॰ बस स्टैंड से साइकल रिक्शा
मिलते थे चाचा के घर के लिए परंतु उसके माता पिता उसे हमेशा पैदल ही लेकर जाते थे॰
कहते थे इतनी भीड़ है यहाँ कि रिक्शा से पहले तो पैदल ही पहुँच जाए व्यक्ति॰
स्वभावतः दुक्की भी अपनी चने के पुड़िया हाथ में पकड़े एक एक दाना चने का मस्ती में
खाते हुए पहुँच गया चाचा के घर॰
उसे
देखकर चाची और मन्नू बहुत खुश हुए॰ चाची ने उसे बहुत प्यार किया॰ मन्नू की निगाहें
भी खुशी के साथ दुक्की का पीछा करतीं॰ जिधर भी दुक्की जाता, मन्नू उधर ही देखता और खिलखिलाकर हँसता॰ घंटों
दुक्की और मन्नू यही खेल खेलते रहे॰ चाची ने दुक्की को जूस पिलाया, उसकी पसंद का खाना खिलाया और उसे कुछ दिन वहीं
रह जाने के लिए बार-बार कहा॰ दुक्की ने कहा कि वह तो एक ही जोड़ा लाया है अगले दिन
पहनने को, तो चाची ने मनुहार कर कहा, “तू उसकी चिंता मत कर बेटे, तेरे चाचा शाम को तेरे लिए ढेर सारे जोड़े बाज़ार
से लाकर दे देंगे॰“
चाचाजी
एक सम्पन्न व्यापारी थे॰ दुक्की के पिताजी अपने भाई को सरकारी नौकरियों के फ़ॉर्म
लाकर देते परंतु चाचाजी या तो फ़ॉर्म भरते ही नहीं, या फिर नौकरी की परीक्षा
उत्तीर्ण नहीं कर पाते॰ वर्षों की बेरोजगारी के बाद उन्होंने अपने एक मित्र के साथ
दूकान-दूकान जाकर तेल बेचना शुरू किया और बाद में मेहनत कर इसी क्षेत्र में एक बड़े
व्यापारी बन गए॰ जहां दुक्की के पिताजी को एक जोड़ा कपड़ा खरीदने के लिए भी योजना
बनानी पड़ती थी, वहीं उसके चाचाजी यूं ही दस-बीस जोड़े खरीद सकते
थे॰
परंतु
दुक्की को अपनी माँ की बात याद थी॰ उसने मना कर दिया॰ बोला, “अभी तो मुझे कल जाना ही है॰ दोबारा फिर आ
जाऊंगा, माँ पिताजी से पूछकर॰“
चाचाजी
शाम को देर से आए॰ सबको बाज़ार ले गए॰ दुक्की का मनपसंद खाना खिलवाया, आइसक्रीम भी खिलवाई॰ उपहार भी खरीद कर दिए॰ देर
रात को सब घर वापस आए॰ घर आकार चाचाजी ने भी उसे रुकने को कहा और यह भी कहा कि यदि
वह अगले दिन सुबह के स्थान पर शाम तक रुक जाए तो चाचाजी शाम को स्वयं उसे छोड़
आएंगे॰ दुक्की रुकना चाहता था परंतु माँ पिताजी उसकी प्रतीक्षा करते होंगे, यह सोचकर उसने मना कर दिया॰
रात
को जब दुक्की सोने गया तो वह बहुत प्रसन्न था॰ सोच रहा था कि क्या उसका हर दिन ऐसा
ही नहीं हो सकता जब वह मन्नू के साथ खेले, स्वादिष्ट भोजन खाए, माँ, पिताजी, चाचीजी और चाचाजी सबका प्यार मिले उसे! परंतु
ऐसा कैसे हो सकता है॰ उसके पिताजी तो गरीब हैं और चाचाजी अमीर! अगर उसे चुनना पड़े
तो वह माँ पिताजी को ही तो चुनेगा॰ चाचाजी चाचीजी उसे प्यार तो बहुत करते हैं, मगर... दिन भर का थका हुआ दुक्की अपने इन्हीं
विचारों के साथ कब सो गया, उसे पता ही नहीं चला॰
सुबह
दुक्की की नींद देर से खुली॰ चाचाजी काम पर जा चुके थे॰ चाचीजी ने भी उसे जल्दी
नहीं उठाया क्योंकि वह कल दिन भर का थका हुआ था और रात देर से सोया था॰
दुक्की
जल्दी जल्दी नहाकर तैयार होने के उपक्रम में जुट गया॰ माँ ने कहा था पहले पहर में
ही लौट आने को॰ अब तो वह दूसरे पहर में पहुँच जाए तो भी गनीमत थी॰ नहाते-नहाते वह
अपनी चवन्नी को खर्च करने की योजना बना रहा था॰ दस पैसे तो बस के किराये में खर्च
हो जाएंगे॰ बाकी के पंदरह पैसे वह कल की तरह ही खर्च करेगा॰ पाँच पैसे का पानी वह
कल की तरह बस यात्रा के समाप्त होने के बाद ही पिएगा॰ बाकी के दस पैसे का क्या
करना है, इसके लिए उसके दिमाग में अनेक विकल्प आ रहे थे॰
बहुत सोचने के बाद उसने निर्णय लिया कि वे दस पैसे की गंडेरियां खरीदेगा॰ गर्मी का
मौसम है, जिसमें गंडेरियां स्वास्थ्य की दृष्टि से भी
अच्छी रहेंगी और स्वाद में तो वे मीठी होती ही हैं॰ एक और लाभ - बस स्टैंड से घर
तक का रास्ता भी मज़े में कट जाएगा॰ गरमी कम लगेगी॰
नहाकर
दुक्की ने कपड़े बदले और कल के कपड़ों में से चवन्नी निकालने के लिए उनकी जेबें
टटोलने लगा॰ चवन्नी तो वहाँ नहीं थी॰ हो सकता है बैग में रख दी हो चवन्नी उसने॰
बैग को कई बार देखा॰ उसमें भी नहीं थी चवन्नी॰ पूरा बिस्तर छान मारा, कई बार॰ चवन्नी वहाँ भी नहीं मिली॰ पलंग के
नीचे भी नहीं॰ रात को छत पर गया था वह॰ शायद वहाँ गिर गई हो॰ भाग कर छत पर गया॰
वहाँ भी नहीं मिली॰ दुक्की के चेहरे का रंग सफ़ेद पड़ गया॰ कहाँ गई चवन्नी? अब वह घर कैसे जाएगा?
नाश्ता
तैयार था॰ चाची उसे बुला रही थीं मगर दुक्की की भूख मारी गई थी॰ चाची को भी समझ
नहीं आ रहा था कि अभी तो यह लड़का जल्दी मचा रहा था और अब नाश्ते के लिए नहीं आ
रहा॰ मन्नू से मिलने के बहाने वह उसके कमरे में गया और वहाँ भी चवन्नी की तलाश की॰
चवन्नी का कहीं पता नहीं चल रहा था॰
नाश्ते
की मेज़ पर चाची बार बार पूछ रही थीं कि क्या हुआ परंतु दुक्की क्या बताता उन्हें? कि उसकी चवन्नी गुम हो गई थी? कि उसके माता पिता ने उसे सिर्फ़ एक अठन्नी देकर
भेज दिया था? कि उसके माता पिता इतने गरीब हैं? कि दुक्की इतना लापरवाह है कि एक चवन्नी भी
नहीं संभाली गई उससे? यह भी तो हो सकता है कि चाची यह समझें कि
दुक्की झूठ बोल रहा है॰ क्या पता खर्च कर दी हो उसने पूरी अठन्नी! क्या पता उसके
माता-पिता ने उसे सिर्फ़ चवन्नी ही दी हो और यह कहा हो कि झूठ बोलकर वापसी का
किराया वह चाची से ले ले॰ वह यह भी तो सोच सकती थीं कि दुक्की ने चवन्नी छुपा कर
रखी है और चाची से भी पैसे ऐंठने के लिए वह झूठ बोल रहा है॰ दुक्की का बालक मन एक
धौंकनी की तरह चल रहा था और उसमें विचारों का जैसे दावानल बह रहा था॰
नहीं, वह चाची जी को कुछ नहीं बताएगा॰ अपने माता पिता
के सम्मान को बनाए रखेगा॰ उसके माता पिता अमीर नहीं परंतु समाज में उनका आदर है॰
वह पैदल घर चला जाएगा किन्तु हाथ नहीं फैलाएगा।
होठों
पर नकली मुस्कान ओढ़े एक बार फिर मन्नू से मिला, चाची जी को उसने प्रणाम किया
और धीमे कदमों के साथ वह चाची जी के घर से बाहर निकल आया॰ बाहर आते हुए भी उसकी
निगाहें अपनी चवन्नी को ही ढूंढ रही थीं॰
अब
क्या करे वह? उसके अपने घर से बस स्टैंड लगभग एक किलोमीटर की
दूरी पर था और चाची जी के घर से बस स्टैंड लगभग डेढ़ किलोमीटर॰ बस स्टैंड से बस
स्टैंड की दूरी लगभग पाँच छह किलोमीटर होगी॰ या शायद सात किलोमीटर॰ कुल मिलाकर सात
से नौ किलोमीटर की दूरी थी जो दुक्की को तय करनी थी॰ ढाई किलोमीटर तो वह कल भी चला
ही था॰ आज पाँच छह किलोमीटर ज़्यादा चलना था॰ या शायद सात किलोमीटर॰
उसके
बैग में चाचा के दिए हुए उपहार थे॰ क्यों न वह उपहार बाज़ार में बेच कर वह किराए के
पैसों की व्यवस्था कर ले? परंतु इसमें एक जोखिम था॰ क्या पता दूकानदार
समझे कि वह चोरी का माल है और वह एक चोर है॰ यदि ऐसा हुआ और उसे पुलिस के हवाले कर
दिया तो उसके माता पिता के आदर-सम्मान का क्या होगा? यह जोखिम वह नहीं ले सकता
था॰
इसी
ऊहापोह में उसने देखा कि वह बस स्टैंड के निकट पहुँच गया था॰ अर्थात लगभग डेढ़
किलोमीटर तो वह चल चुका था॰ किन्तु उसने यह भी अनुभव किया कि कल ये डेढ़ किलोमीटर
चलने में उसे तनिक भी कठिनाई नहीं हुई थी, जबकि आज उसे पसीना आ रहा था, प्यास लग रही थी॰ सूर्य सिर के ठीक ऊपर आ रहा
था॰ थोड़ी ही देर में गर्मी असहनीय हो जाएगी, उसने सोचा॰ बस स्टैंड के
रास्ते में एक मंदिर था, इसकी उसे जानकारी थी॰ वह मंदिर की ओर मुड़ गया॰
मंदिर
में उसने पानी पिया, मुंह-हाथ भी धोया॰ बाल अच्छे से गीले कर लिए॰
रूमाल भी गीला कर लिया॰ आज सूर्य के प्रकोप से सामना होने वाला था दुक्की का॰
मंदिर में सुस्ताने के समय दुक्की ने विचार किया कि वह शेष छह सात किलोमीटर को छह
भागों में बाँट कर यात्रा पूरी करेगा॰ यदि वह एक बार में एक से डेढ़ किलोमीटर पूरे
कर सकता है तो वह हर एक से डेढ़ किलोमीटर की यात्रा को अलग अलग यात्राएं मानकर पूरा
करेगा॰ यह विचार आते ही उसने अपने भीतर एक नई ऊर्जा का अनुभव किया॰ उसने तय किया
कि वह न केवल पैदल घर पहुंचेगा बल्कि सकुशल पहुंचेगा और बीमार भी नहीं पड़ेगा ताकि
उसके माता पिता को पता न चले कि उसने चवन्नी खो दी थी॰
बस का
मार्ग सीधा था इसलिए उसे रास्ता समझने का कोई झंझट नहीं था॰ झंझट यह था कि पाँच छह
किलोमीटर का राजमार्ग होने के कारण रास्ते में कोई बड़ा मंदिर नहीं था जहां वह आराम
कर सकता और पानी पी सकता॰ पानी पीने के लिए उसे दो तीन बार राजमार्ग से भीतर आना
पड़ा जिससे उसका रास्ता कुछ और लंबा हो गया॰ परंतु यह योजना उसके काम आई और वह किलकिलाती
धूप में कुछ घंटों की यात्रा सम्पन्न कर अपने घर पहुँचने में सफल हो गया॰ एक झूठ
उसे अवश्य बोलना पड़ा कि रास्ते में बस खराब हो गई थी॰ उसे डर था कि कहीं उसे लू न
लग गई हो, इसलिए उसने माँ से मांगकर ढेर सारी शिकंजी पी
और खूब देर तक स्नान किया॰ परंतु माँ को पता नहीं चलने दिया कि उसकी चवन्नी के साथ
क्या किया था दुक्की ने॰
रात
को दुक्की घोड़े बेचकर सोया॰ अगले दिन सुबह फिर देर से नींद खुली॰ माँ कपड़े धो रही
थी॰ दुक्की ने सुना, माँ ने उसके उठते ही उससे प्रश्न दागा, “कल चवन्नी का क्या किया था? पानी भी नहीं पिया?”
दुक्की
को काटो तो खून नहीं॰ कैसे पता चला माँ को सारी बात का? आँखें मलता हुआ और डरते हुए वह माँ की ओर बढ़ा॰
माँ के हाथ में एक चवन्नी थी और वह कह रही थी, “तेरी हाफ़ पैंट की जेब फटी
हुई है, यह भी नहीं बताया तूने! शुकर है निक्कर के पोंचों की तुरपाई भी उधड़ी
हुई है, अंदर से॰ बच गई चवन्नी - उसमें फँसकर!”