एक प्रॉपर्टी डीलर का फ़ोन था। उससे बात कर फ़ोन काटा तो अनायास तोतले डॉक्टर साब का स्मरण हो आया।
हमारे मोहल्ले के सबसे अधिक लोकप्रिय डॉक्टर थे वह। उनका नाम याद रखने का कष्ट कोई नहीं करता था, सब उन्हें तोतला डॉक्टर के नाम से ही जानते थे। वैसे भी उनके क्लीनिक पर बोर्ड लगा तो था, परन्तु उस पर क्या लिखा था, कोई पढ़ नहीं पाता था। बरसों पुराना बोर्ड था, टूटा फूटा, धूल मिट्टी, बारिश के हज़ारों थपेड़ों ने उसे बदरंग, बेहाल कर रखा था। परन्तु डॉक्टर साब ने शायद कभी उसे देखा ही नहीं। उनकी प्रैक्टिस तो वैसे ही खूब चलती थी।
डॉक्टर साब तोतले थे परन्तु बात करने के बहुत शौकीन थे। कहने को तो उनका क्लीनिक सारा दिन खुला रहता था, परन्तु वह अपने क्लीनिक में कम और आस-पास की दुकानों में अधिक पाए जाते थे, बतियाते हुए। कई बार तो वह किसी और की दूकान में बैठकर मरीज़ों का इलाज भी कर दिया करते थे। कई लोग पसंद भी करते थे, किसी और दूकान में दिखाना, क्योंकि कहीं और बैठ कर वह मरीज से अपनी फ़ीस नहीं लेते, "अले तभी त्लीनित में आओदे तो लेंदे पैसे, यहां त्या लेने पैसे!" वैसे, अपने क्लीनिक में भी अपनी फ़ीस लेने से अक्सर शरमाते थे वह, "अले, अदली बाल तभी आओदे तो लेे लेंदे पैसे, धल ती ही तो बात है।"
पूरे मोहल्ले के चहेते थे डॉक्टर साब। किसी को कैसी भी ज़रूरत हो, डॉक्टरी परामर्श की या फिर कैसी भी, एक व्यक्ति जिसका विचार सबसे पहले आता था, वह थे तोतले डॉक्टर साब।
एक दिन मैं उनके क्लीनिक में गया तो उन्होंने तुरंत मिठाई का डिब्बा आगे कर दिया। बहुत प्रसन्न थे वह, "दमीन ती रजिस्त्री तरवाई है आद। अपना मतान बनवाना है अब!"
उस दिन से वह आसपास की दुकानों में दिखने बंद हो गए। मकान बनवाना शुरू कर दिया था उन्होंने। हर रोज़ वहीं जाते थे, राज मिस्त्रियों के साथ खड़े होकर बनते हुए मकान की देखभाल करते थे। "अले, पूली फैमिली ता सपना है, अपना मतान। दूसरों पर तैसे छोड़ सतते हैं?"
एक अनधिकृत बस्ती में प्लॉट खरीदा था डॉक्टर साब ने। अब जो डॉक्टर अपनी फ़ीस लेने में भी शरम करेगा, वह किसी पॉश इलाके में तो मकान लेे नहीं सकता! एक छोटे से प्लॉट में डॉक्टर साब अपने सपनों का आशियाना बना रहे थे। उनकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था।
एक दिन डॉक्टर साब बहुत मायूस बैठे थे अपने क्लीनिक में। मैं यूं ही चला गया था, उनसे उनके मकान की प्रगति के बारे में पूछने। रुआंसे डॉक्टर साब ने जवाब दिया, "मतान तो पूला हो दया है, मदल उसे एत दुंडे ने तिसी औल तो बेत दिया।"
मैं समझा नहीं। उनका मकान किसी और ने किसी तीसरे को बेच दिया! यह कैसे संभव है? उन्होंने विस्तार से बताया कि उस गुंडे के पास भी उस मकान के काग़ज़ात थे और अब उस मकान पर कब्ज़ा भी किसी और का है। "तुछ नहीं हो सतता। मैंने बात तल ली है, वतीलों से।" उन्हें सांत्वना देकर मैं घर जा रहा था तो मन उद्वेलित था। चाहता था कुछ करूं उनके लिए परन्तु विवश था।
कुछ दिन बाद उनके क्लीनिक के सामने से गुज़रा, तो मेरी निगाहें दूसरी ओर थीं। उनसे निगाहें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। सपने चूर चूर होने का दर्द मैं समझ पा रहा था। परन्तु भीतर से डॉक्टर साब ने मुझे देख लिया था। ज़ोर से मेरा नाम पुकारते हुए बाहर आए और मुझसे खुशी से लिपट गए, "मैंने आपती आंथों में अपने लिए दर्द देथ लिया था उस दिन। मैं आपते धल आने ती सोच ही लहा था आपतो थुशथबली देने।"
"क्या मकान वापस मिल गया आपका?" अति उत्साह में मैंने तुरन्त पूछ लिया।
"मेला मतान तो नहीं, वह तो बित दया था न! उस दुंडे ने मुझे एत दूसला मतान दिला दिया है। तल उसती रजिस्त्री भी हो दयी औल तब्जा भी। तब्जा हो जाए तो तोई फितर नहीं," डॉक्टर साब बहुत खुश थे, "एत पेशंत है, मेरा, बहुत लुतबे वाला, उसने तला दिया यह ताम।"
वहां से निकला तो मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह बात खुश होने की थी अथवा नहीं। डॉक्टर साब की खुशी में तो मैं खुश था, परन्तु सोच रहा था, उस व्यक्ति के बारे में जिसका मकान उस गुंडे ने डॉक्टर साब को दे दिया था। उस बेचारे के पास यदि किसी रुतबे वाले तक पहुंच नहीं हुई तो? क्या उसके जीवन भर की कमाई यूं धोखाधड़ी से कोई दूसरा छीन लगा? कैसी है हमारी कानून व्यवस्था?
कई दिन परेशान रहा, यह सोचकर कि क्या हुआ होगा उस व्यक्ति का। बेबस था, उसकी मदद नहीं कर सकता था। हां, अपने लिए अवश्य एक सबक लिया कि कभी अनधिकृत क्षेत्र में मकान नहीं खरीदूंगा, चाहे सारी उम्र किराए के मकान में रहना पड़े।
दशकों हो गए इस घटना को। जीवन भर इस बात को मैंने गांठ बांधे रखा। अनेक अवसर आए, पक्की रजिस्ट्री, मीठा पानी के वायदे के साथ सस्ता मकान लेने की परन्तु मैं किसी नामी बिल्डर से मकान खरीदने के अपने निर्णय पर अडिग रहा। अंततः अपनी जेब के अनुसार एक फ़्लैट मिल ही गया। कुछ जमापूंजी, पी. एफ. और बाकी बैंक से लोन लेकर फ़्लैट की पूरी कीमत अदा कर दी, एक अच्छा सा डिस्काउंट लिया और तीन साल में फ़्लैट के पूरा होने की प्रतीक्षा करने लगा। आज आठ वर्ष हो गए हैं और फ़्लैट अभी भी उतनी ही दूर है मुझसे, जितना उस मनहूस घड़ी में था, जब मैंने इसे खरीदने का निर्णय लिया था। जिस घर में रह रहा हूं, उसका किराया तो दे ही रहा हूं, घर के राशन से पहले हर महीने इस फ़्लैट के लिए जो लोन लिया था, उसकी किस्त का भुगतान कर रहा हूं आठ वर्षों से।
अभी अभी एक प्रॉपर्टी डीलर का फ़ोन आया था। उसने यह प्रस्ताव दिया है कि कोई पार्टी है जो इस फ़्लैट के बदले किसी अन्य बिल्डर का एक दूसरा फ़्लैट देने को तैयार है। साथ में बस, बीस लाख और देने होंगे।
सोच रहा हूं, क्या डॉक्टर साब से भी उस गुंडे ने बीस लाख और मांगे होंगे? या फिर उस रुतबे वाले ने?
- नजदीक से